क्या Black Friday Sale में, सच में आपका पैसा बचता है या लूटता है जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी

क्या आपने कभी सोचा है कि Black Fridayका नाम सुनते ही हमारे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है? मानो कोई जादुई ताकत हमें शॉपिंग वेबसाइट्स या मॉल्स की तरफ खींच ले जाती है। “सीमित ऑफर”, “बस आज के लिए”, “80% तक की छूट” जैसे शब्द हमें ऐसा महसूस कराते हैं जैसे अगर हम अभी नहीं खरीदेंगे तो हमारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी चूक हो जाएगी।

    लेकिन क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? क्या सच में हमें उन सारी चीज़ों की ज़रूरत होती है जो हम ब्लैक फ्राइडे पर खरीदते हैं? या फिर यह सब एक पूरी तरह से प्लान किया गया साइकोलॉजिकल गेम ? है जो आपके दिमाग के साथ खेला जाता है

    जी हाँ, आपका अंदाज़ा बिल्कुल सही है। ब्लैक फ्राइडे की पागलपन भरी दौड़ के पीछे हमारे दिमाग का एक बहुत बड़ा रोल होता है। आइए, आज समझते हैं कि कैसे यह, सेल का जादू हम पर काम करता है। आइए मै आपको कुछ कारण बताता हु।

    1. सीमित समय यानि समय का आभावका डर: जिसको हम अंग्रेजी में फियर ऑफ मिसिंग आउट यानि (FOMO) बोलते है 

    यह शायद सबसे ताकतवर हथियार है। मनोविज्ञान की भाषा में इसे “फियर ऑफ मिसिंग आउट” यानी FOMO कहते हैं। इसका मतलब है कि हमें यह डर सताता रहता है कि कहीं कोई अच्छा मौका, कोई बढ़िया ऑफर हमसे छूट न जाए। और ब्लैक फ्राइडे के दौरान तो यह डर चरम पर पहुँच जाता है

    24 घंटे का ऑफर : यह टाइमर हमें लगातार याद दिलाता रहता है कि समय बहुत कम है।

    केवल पहले 100 ग्राहकों के लिए: यह बताता है कि सिर्फ़ समय ही नहीं, मौका भी सीमित है।

    दोस्तों और परिवार की खरीदारी: जब हम सोशल मीडिया पर देखते हैं कि हमारे दोस्त नया टीवी फ्रिज,फोन, लैपटॉप आदि खरीद रहे हैं, तो हमारे मन में भी यह भावना आती है अरे! मैं भी तो खरीद सकता था!

    इस FOMO के चलते हम बिना सोचे-समझे उन चीज़ों को भी खरीद लेते हैं, जिनकी हमें ज़रूरत भी नहीं होती। हम सोचते हैं अगर अभी नहीं खरीदा, तो फिर पूरे साल इतना अच्छा ऑफर मिलेगा कि नहीं, यह डर हमें तार्किक सोचने से रोक देता है।

    2. मुफ्त, का जादू यानि : द पावर ऑफ फ्री

    हमारा दिमाग “मुफ्त” शब्द के आगे बिल्कुल बच्चे जैसा हो जाता है। भले ही हमें पता हो कि दुनिया में कुछ भी मुफ्त नहीं होता, फिर भी यह शब्द हमें अपने तरफ आकर्षित करता है।

    हालांकि Black Friday ऑफर में यह जादू बहुत काम आता है।

    एक खरीदो, एक मुफ्त पाओ : भले ही हमें दूसरे प्रोडक्ट की ज़रूरत न हो, लेकिन “मुफ्त” का लालच हमें दोनों खरीदने पर मजबूर कर देता है।

    मुफ्त डिलीवरी: जब हम 2000 रुपये का सामान खरीद रहे होते हैं, तो 50 रुपये की डिलीवरी चार्ज बचाने के चक्कर में हम 500 रुपये का एक और सामान जोड़ देते हैं ताकि “मुफ्त डिलीवरी” का ऑफर पा सकें।

    मुफ्त गिफ्ट्स और कूपन: ये छोटे-छोटे इनाम हमें लगातार शॉपिंग करने के लिए प्रेरित करते हैं।

    दरअसल, “मुफ्त” का आनंद हमें इतना खुश करता है कि हम यह भूल जाते हैं कि हमने उसे पाने के लिए पहले से ही कितना पैसा खर्च किया है।

    3. एंकरिंग इफेक्ट: दिमाग का झांसा

    हम किसी चीज़ की कीमत उसके असली दाम से नहीं, बल्कि उसके बगल में लिखे “पहले के दाम” से आंकते हैं। इसे ही एंकरिंग इफेक्ट कहते हैं।

    आइए आपको इसे एक उदाहरण से समझाता हु जैसे –

    · एक स्मार्टफोन का असली दाम शायद 15,000 रुपये है।

    · लेकिन दुकानदार उस पर “पहले का दाम: 25,000 रुपये” लिखकर “अब सिर्फ 15,000 रुपये” का स्टिकर लगा देता है।हमारा दिमाग तुरंत 25,000 रुपये के आंकड़े को “एंकर” यानी लंगर के रूप में पकड़ लेता है।अब जब हम उसे 15,000 रुपये में खरीदते हैं, तो हमें लगता है कि हमने 10,000 रुपये बचा लिया और हमे बहुत खुशी होती है हकीकत में, हमने उस सामान के लिए उसकी सही कीमत ही दी है, लेकिन ऊँचे “एंकर प्राइस” ने हमें यह एहसास दिला दिया कि हमने एक बेहतरीन डील पकड़ी है।

    ब्लैक फ्राइडे पर हर जगह यही नज़ारा दिखता है। बड़े-बड़े क्रॉस किए हुए दाम और उनके बगल में चमकता हुआ “सेल प्राइस” हमारे फैसले को सीधे अपने तरफ खींचता है ।

    4. हर्ड मेंटैलिटी यानि : भेड़चाल का असर

    इंसान एक सामाजिक प्राणी है। हम वही करते हैं जो बाकी लोग कर रहे होते हैं। हमें यह विश्वास होता है कि अगर इतने सारे लोग किसी चीज़ को खरीद रहे हैं, तो वह चीज़ ज़रूर अच्छी और ज़रूरी होगी। और ब्लैक फ्राइडे पर यह भेड़चाल चरम पर होती है।

    लंबी कतारें: मॉल्स के बाहर लगी लंबी कतारें हमें आकर्षित करती हैं। हम सोचते हैं, “कुछ तो खास है, इसीलिए इतने लोग लगे हैं।”

    जल्दी खरीदें, स्टॉक खत्म”: यह मैसेज हमें बताता है कि बहुत से लोग इस प्रोडक्ट को खरीद रहे हैं और अगर हमने देर की तो हमें नहीं मिलेगा।

    ट्रेंडिंग प्रोडक्ट्स: ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स पर “ट्रेंडिंग” और “बेस्टसेलर” सेक्शन हमें वही खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं जो दूसरे खरीद रहे हैं।

    हम यह मान लेते हैं कि इतने सारे लोग गलत नहीं हो सकते। इस सोच के चलते हम भी उसी भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं।

    5. खरीदारी का “खुशी” वाला हार्मोन

    जब हम कोई चीज़ खरीदते हैं, खासकर तब जब हमें लगता है कि हमने एक अच्छी डील पकड़ी है, तो हमारे दिमाग में “डोपामाइन” नाम का एक केमिकल रिलीज़ होता है। यह वही केमिकल है जो हमें खाना खाने, एक्सरसाइज करने या कोई उपलब्धि हासिल करने पर खुशी देता है।

    ब्लैक फ्राइडे पर यह पूरी प्रक्रिया एक गेम में बदल जाती है।ऑफर ढूंढना: एक बढ़िया ऑफर खोजने में ही मजा आता है।

    कार्ट में डालना: प्रोडक्ट को कार्ट में डालते वक्त एक अलग ही सुख मिलता है।

    खरीदें” बटन दबाना: यह सबसे बड़ा पल होता है, जब डोपामाइन का स्तर सबसे ज़्यादा होता है।

    यही कारण है कि ब्लैक फ्राइडे की खरीदारी एक तरह की रिलीफ” या “इनाम” की तरह महसूस होती है। हम सिर्फ सामान नहीं खरीद रहे होते, बल्कि उस खरीदारी के जरिए खुशी का अनुभव कर रहे होते हैं।

    लेकिन सवाल आता है तो हम क्या करें? और एक समझदार ग्राहक कैसे बनें?

    अब जब हमने इस पूरे मनोवैज्ञानिक खेल को समझ लिया है, तो क्या हमें ब्लैक फ्राइडे पर शॉपिंग ही नहीं करनी चाहिए?

    जरूरी नहीं। ब्लैक फ्राइडे पर वाकई में कुछ अच्छे ऑफर मिलते हैं। लेकिन जरूरत इस बात की है कि हम एक स्मार्ट और जागरूक ग्राहक बनें। इन आसान टिप्स को फॉलो करके आप ब्लैक फ्राइडे का आनंद बिना पछतावे के उठा सकते हैं।

    1. लिस्ट बनाएं, बजट तय करें: शॉपिंग पर जाने से पहले एक लिस्ट बनाएं कि आपको वास्तव में किन चीज़ों की ज़रूरत है। एक बजट तय करें और उससे बाहर न निकलें।

    2. रिसर्च करें: जिस प्रोडक्ट को आप खरीदना चाहते हैं, उसकी कीमत ब्लैक फ्राइडे से पहले ही चेक कर लें। इससे आपको पता चल जाएगा कि “छूट” वास्तविक है या नकली।

    3. “मुफ्त” के फंदे में न फंसें: खुद से पूछें, “क्या मुझे सच में दो चीज़ों की ज़रूरत है?” या “क्या मैं सिर्फ मुफ्त डिलीवरी के चक्कर में ज़रूरत से ज़्यादा का सामान तो नहीं ले रहा हूँ?”

    4. FOMO को नज़रअंदाज़ करें: याद रखें, ब्लैक फ्राइडे हर साल आता है। अगर इस बार कोई डील छूट भी गई, तो कोई बात नहीं। आपके पैसे बचे रहेंगे और अगली बार का इंतज़ार कर सकते हैं।

    5. 24 घंटे इंतज़ार का नियम: अगर आपको कोई चीज़ बहुत पसंद आ रही है और आप उसे तुरंत खरीदने पर उतावले हैं, तो खुद को 24 घंटे का टाइम दें। अगले दिन दोबारा सोचें, क्या आपको अब भी उसकी उतनी ही ज़रूरत महसूस हो रही है? ज्यादातर मामलों में, आपकी एक्साइटमेंट शांत हो जाएगी।

    ब्लैक फ्राइडे कोई साधारण सेल नहीं है; यह हमारे दिमाग को समझकर बनाई गई एक बड़ी मार्केटिंग रणनीति है। जब हम इसके पीछे के मनोविज्ञान को समझ जाते हैं, तो हम इसके जाल में फंसने से बच जाते हैं।

    अगली बार जब आप ब्लैक फ्राइडे के ऑफर देखें, तो एक गहरी सांस लें और खुद से पूछें: “क्या मैं यह इसलिए खरीद रहा हूँ क्योंकि मुझे इसकी ज़रूरत है, या सिर्फ इसलिए क्योंकि यह ‘सस्ता’ है?

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *